पंडित गजेंद्र शर्मा

पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने के दिन होते हैं श्राद्धपक्ष। 13 सितंबर से प्रारंभ हो रहे श्राद्धपक्ष में लोग अपने पितरों की प्रसन्न्ता और उनकी तृप्ति के लिए तर्पण, पिंडदान, दान-धर्म करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं पितृपक्ष पितृदोष की शांति के दिन भी होते हैं। यदि किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में पितृदोष बना हुआ है तो पितृपक्ष से अच्छा और कोई समय नहीं होता जब पितृदोष की शांति की जा सकती है।

क्या होता है पितृदोष और कैसे बनता है?

किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में पितृदोष तब बनता है, जब अपने पूर्व जन्म में उसके हाथों पितरों के अंतिम संस्कार में किसी प्रकार की त्रुटि रह जाती है। पितरों का अपमान हो जाता है। जीते-जी माता-पिता या परिवार के बुजुर्गों की सेवा नहीं करना। गाय का अपमान। कुल देवी-देवता को नहीं मानना। पवित्र नदी, तालाब, कुएं में मलमूत्र विसर्जन करना। गर्भपात कराना या किसी जीव की हत्या करना। फल-फूल-छायादार वृक्षों को कटवाना। पितरों का श्राद्धकर्म ठीक से नहीं कर पाने जैसे अनेक कारणों से व्यक्ति की जन्मकुंडली में पितृदोष बन जाता है। ग्रहीय स्थिति के आधार पर कुंडली देखकर पता किया जा सकता है कि किसी जातक को पितृदोष है या नहीं। जन्मकुंडली में सूर्य को आत्मा, आत्मज, पिता और पितरों का ग्रह माना गया है। सूर्य यदि कुंडली में एक से अधिक पाप ग्रहों से दृष्ट है तो जातक को पितृदोष लगता है। इसके अलावा कुंडली का नवम स्थान भी पितरों का स्थान माना गया है। नवमेश (नवम स्थान के स्वामी) को यदि एक से अधिक पाप ग्रह की दृष्टि हो तो पितृदोष बनता है। सूर्य के साथ राहु की युति या राहु की दृष्टि भी पितृदोष का कारण बनती है।

पितृदोष के क्या हैं लक्षण?

जब किसी जातक की जन्मकुंडली में पितृदोष बनता है तो उसके जीवन में परेशानियां बहुत ज्यादा आती है। लगातार धन की कमी बनी रहती है। पूर्व में संचित धन भी गलत कार्यों में नष्ट हो जाता है। परिवार का मुखिया गलत रास्तों पर चल पड़ता है। वह जुआं-सट्टा, नशा आदि में अपना धन बर्बाद कर देता है। स्त्रियां परपुरुषों और पुरुष परस्त्री के साथ संलग्न हो जाते हैं। पितृदोष वाले जातक या तो संतानहीन रह जाता है या फिर संतान का विकलांग या मंदबुद्धि पैदा होना। परिवार में लगातार रोग बने रहना जैसे लक्षण हो तो ये सब पितृदोष के कारण होता है।

पितृपक्ष में क्या उपाय करना चाहिए?

  • पितृदोष की शांति के लिए पितृपक्ष सबसे उत्तम दिन माने गए हैं। माना जाता है कि पितृपक्ष के दौरान पितृ अपने परिजनों से धूप के रूप में अन्न्-जल ग्रहण करने आते हैं और संतुष्ट होने पर अच्छे आशीर्वाद देकर जाते हैं। इसलिए पितृदोष की शांति के लिए कुछ विशेष उपाय इस दौरान किए जाना चाहिए।
  • पितृपक्ष में पितरों के नाम से श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान अवश्य करें। यदि पितरों की मृत्यु तिथि ज्ञात है तो उसी तिथि पर श्राद्ध करें, अन्यथा सर्वपितृ अमावस्या पर श्राद्ध किया जा सकता है।
  • पंचमी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा को पितरों के नाम से गरीबों, जरूरतमंदों को अन्न्, वस्त्र, जरूरत की वस्तुएं इत्यादि दान दें।
  • पितृपक्ष में नियमित रूप से भागवत महापुराण कथा का पाठ करना पितृदोष शांत करने का सबसे बड़ा उपाय है। स्वयं नहीं पढ़ सकते तो कहीं सुनने जाएं।
  • पीपल के पेड़ में पितरों का वास माना गया है। इसलिए पितृपक्ष में प्रतिदिन पीपल के पेड़ में मीठी कच्चा दूध जल मिलाकर अर्पित करें।
  • पीपल के पेड़ में प्रतिदिन शाम के समय आटे के पांच दीपक जलाएं।
  • पितरों के नाम से किसी वेदपाठी ब्राह्मण को भोजन करवाकर यथाशक्ति दान-दक्षिणा भेंट करें।
  • पितृपक्ष में प्रतिदिन गायों को हरी घास खिलाएं।
  • गाय को घी-गुड़ रखकर ताजी रोटी खिलाएं।
  • पितृदोष निवारण के लिए महामृत्युंजय के मंत्र से शिवजी का अभिषेक करें।
  • प्रतिदिन पितृ कवच का पाठ करने से पितृदोष की शांति होती है।
  • पितृपक्ष में पितरों के नाम से फलदार, छायादार वृक्ष लगवाएं।
  • भविष्य के लिए यह संकल्प करें कि घर के बुजुर्गों की सेवा करेंगे, घर की स्त्री, पत्नी, बेटी का अपमान नहीं करेंगे। वृक्षों को हानि नहीं पहुंचाएंगे।

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