विद्या, बुद्धि तथा समृद्धि के दाता विघ्न विनाशक गणेश जी का उत्सव काशी में व्यापक उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। बताया जाता है इसी भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी के दिन मध्याह्न के समय गणेश जी का जन्म हुआ था। भगवान गणेश बुद्धि के देव हैं। गणेश जी का वाहन चूहा है। रिद्धि-सिद्धि गणेश जी की दो पत्नियां हैं। इनका सर्वप्रिय भोग लड्डू हैं।
शिव की नगरी काशी में गणेश पूजनोत्सव के अवसर पर विभिन्न पंडालों में प्रथम पूज्य श्री गणेश की मूर्तियां स्थापित हो गई हैं। पंडालों में दर्शन और पूजन का दौर शुरू हो गया है। गणेशोत्सव के प्रथम दिन मानसरोवर स्थित श्रीरामतारका आंध्रा आश्रम में सुबह नौ बजे गणेश प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा, कलश स्थापना, नवग्रह पूजन, रुद्राभिषेक, अष्ट दिव्य पालक पूजा, मंत्र पुष्पम, मंगला आरती केे बाद अंत में प्रसाद वितरित हुआ। शाम 4 बजे जे अय्यपेश्वर द्वारा श्री गणेशोत्पति समन्तकोपाख्यानम कथा हुई। मैनेजिंग स्ट्रस्टी वीवी सुंदर शास्त्री व उप प्रबंधक वीवी सीताराम ने पंडाल में आये अतिथियों का स्वागत किया।
दुर्गाघाट स्थित नूतन बालक गेणेशोत्सव समाज सेवा मंडल नाना फडवनीस बाड़ा में सुबह आठ बजे गणेशोत्सव का उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता कुलपति संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के डा. राजाराम शुक्ल ने की। मूर्ति स्थापना आचार्य धनंजय शास्त्री व पंडित हेमंत जोशी के आचार्यत्व में हुई। पूर्वाह्न में गणेश याग कार्यक्रम, शाम में वैदिक ब्राह्मणों द्वारा वसंत पूजा व हरि भक्त पारायण श्याम बुआ घुमकेकर, नागपुर का नारदीय पद्धति में हरि कीर्तन हुआ। श्री काशी विद्या मंदिर, मछोदरी गायघाट में सुबह गणेश जी की प्राण प्रतिष्ठा हुई। संस्थापक व अध्यक्ष रामचरण ने बताया पूरे सप्ताह शाम में सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। अग्सतकुंडा स्थित श्री गणेशोत्सव सेवा समिति, श्री राधाकृष्ण मंदिर में सुबह प्राण प्रतिष्ठा व उद्घाटन समारोह हुआ।
काशी में 56 विनायक व 11 गणेश पीठ
काशी में गणेश के एक-दो नहीं बल्कि 67 पीठ है। इसमें 11 गणेश पीठ और 56 विनायक पीठ है। इन सभी का अलग-अलग महत्व है। अलग-अलग छवि और कार्य बताए गए हैं। महाराष्ट्र के बाद काशी ही है जहां पूरे उत्साह के साथ गणेशोत्सव मनाया जाता है।
राष्ट्रवाद की भावना से उदय हुआ गणेशोत्सव
भोले शंकर की नगरी में 123 साल पहले लोकमान्य तिलक ने गणेशोत्सव की शुरूआत की। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने काशी में 1896 में जब सार्वजानिक गणेश पूजन का आयोजन किया तो उनका मकसद सभी जातियो धर्मो को एक साझा मंच देने का था जहां सब बैठ कर मिल कर कोई विचार कर सके। गणेशोत्सव ने आजादी का नया ही आंदोलन छेड़ दिया था। अंग्रेज भी इससे घबरा गये थे। इसके तहत सबसे पहले गठित हुई काशी गणेशोत्सव समिति। ब्रह्मा घाट पर सरदार आंद्रे का बाड़ा में पहली बार 1896 में गणेशोत्सव मनाया गया।