शिल्पा ठाकुर
इस्लामाबाद। पाकिस्तान स्थित आतंकवादी हाफिज सईद को अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र संघ वैश्विक आतंकी घोषित कर चुके हैं। जिस वक्त उसने आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का गठन किया था, तब वह पाकिस्तान के इंजीनियरिंग विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद पर था। उसने इस संगठन का गठन साल 1990 में किया था।
जबकि वह विश्वविद्यालय में 1999 तक प्रोफेसर के पद पर रहा। यानी आतंकी बनने के बाद भी उसने करीब एक दशक तक अपनी नौकरी को बचाए रखा।
इस बात का खुलासा पाकिस्तान के एक पत्र से हुआ है। जिसमें यूएनएससी के निर्देश पर जब्त हुए धन को जारी करने के लिए हाफिज सईद के अनुरोध का समर्थन किया गया है। इस पत्र के अनुसार सईद लाहौर के इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद से साल 1999 सेवानिवृत हुआ था।
वह इस विश्वविद्यालय से 1974 में जुड़ा था। संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के स्थायी मिशन ने यूएनएससी के पैनल को पत्र लिखते हुए कहा है, “1999 में अपनी सेवानिवृत्ति के बाद, उन्होंने 25 वर्ष की पेंशन सेवा पूरी कर ली थी और (अपने बैंक खाते के माध्यम से 45,700 रुपये) पेंशन प्राप्त किए थे।” दिसंबर 2008 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा हाफिज सईद को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के बाद उसके बैंक खातों को फ्रीज किया गया और तभी से ये पेंशन भी रोक दी गई।
दस्तावेज से पता चलता है कि पाकिस्तान सरकार, जो उसकी पेंशन का भुगतान करती है, उसके पास बकाया पेंशन भुगतान में 11 लाख रुपये हैं, जो उसके बैंक खातों में जमा नहीं किए जा सकते हैं। एक भारतीय अधिकारी का कहना है कि हाफिज सईद 1999 तक विश्वविद्यालय से जुड़ा रहा था।
लेकिन यह बहुत दुर्लभ अवसर है, जब पाकिस्तान ने इस बात को स्वीकार किया है। इसका मतलब ये भी है कि पाकिस्तान लगातार सईद की पेंशन का भुगतान कर रहा था, बावजूद इसके कि तब तक लश्कर-ए-तैयबा को पाकिस्तान, अमेरिका और कई अन्य वैश्विक संगठनों ने प्रतिबंधित कर दिया था।
भारतीय अधिकारियों का कहना है कि एक आतंकवादी समूह चलाना और एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में काम करना, साथ में पेंशन भुगतान ये दिखाता है कि पाकिस्तानी प्रतिष्ठान, सैन्य या अन्य में हाफिज सईद का दबदबा था। यूएनएससी ने प्रतिबंध सूची में 1993 के बाद से लश्कर-ए-तैयबा की भूमिका पर कहा है कि इसने “सैन्य और नागरिकों के खिलाफ कई आतंकवादी ऑपरेशन” चलाए थे। जिसमें भारत में हुए कई बड़े आतंकी हमले भी शामिल हैं। हालांकि पाकिस्तान ने कभी उसपर शिकंजा नहीं कसा। वह पाकिस्तानी सेना के अधिकारी और नेताओं के साथ आए दिन दिखाई देता रहा है।