राज्य सभा मे भी बिल पारित होने के पूरे आसार

पदम पति शर्मा
मुख्य संपादक

नई दिल्ली । नागरिकता संशोधन बिल लोकसभा में करीब सात घंटे चली गर्मागर्म बहस के बीच सोमवार को आधी रात को हुए मतविभाजन में प्रचंड बहुमत से पास हो गया। इस बात के पूरे आसार हैं कि पूर्ण बहुमत न होने के बावजूद यह विधेयक बुधवार 11 दिसम्बर को राज्य सभा में भी पारित हो जाएगा।

मोदी सरकार द्वारा सोमवार नौ दिसम्बर को लोकसभा में पेश नागरिकता संशोधन बिल के पक्ष में 311 वोट पड़े थे जबकि विपक्ष में महज 80 ।

अब यह बिल राज्य सभा में पेश होने जा रहा है। विधेयक को राज्य सभा में पास कराने को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने कमर कस ली है। पार्टी ने 10 और 11 दिसंबर के लिए व्हिप जारी की है।

गौरतलब है कि यह विधेयक जनवरी 2019 में लोकसभा में तो पारित हो गया था लेकिन राज्य सभा में बहुमत न होने की वजह से लटक गया। इसके बाद चुनाव आ गए और बिल निष्प्रभावी हो गया। अब इसे दोबारा से लाया गया है। 

नागरिकता संशोधन बिल को लेकर सोमवार को लोकसभा मे आधी रात तक चर्चा चली। इसके बाद हुए मतदान में एनडीए की सहयोगी जेडीयू और एलजेपी ने बिल के पक्ष में वोट किया। वहीं सुबह विधेयक के विरोध की बात करते हुए महाराष्ट्र मे गठबंधन की सरकार चला रही शिवसेना सहयोगी दलों कांग्रेस और एनसीपी के साथ लामबंद दिखी थी। मगर शाम होते होते अपनी हिन्दुत्व की विचार धारा पर लौटती दिखी और मतविभाजन के समय शिवसेना ने बिल के पक्ष में मतदान किया।

जहाँ तक यूनाइटेड जनता दल का सवाल है तो एनडीए के पिछले कार्यकाल में वह इस विधेयक के विरोध में थी। उसको पूर्वोत्तर के राज्यों के हितों को लेकर शंका थी। लेकिन उसकी यह शंका इस बार दूर कर दी गयी। परिणामस्वरूप जेडी यू बहिर्गमन की जगह मतविभाजन के समय एनडीए के सहयोगी की भूमिका में नजर आयी।

बीजेडी और वायएसआर कांग्रेस जैसी गैर एनडीए पार्टियों ने भी गत रात चूंकि खुल कर एनडीए का साथ देते हुए बिल के पक्ष में मतदान किया इससे लगता है कि 11 दिसम्बर को राज्य सभा में भी शिवसेना,
बीजेडी,एआईएडीएमके और वायएसआर कांग्रेस के साथ देने से बिल के पारित होने के प्रति कोई संदेह नहीं रह गया है।

क्या है इस बिल में 

इस विधेयक में बांग्लादेश, अफ़गानिस्तान और पाकिस्तान के छह अल्पसंख्यक समुदायों (हिंदू, बौद्ध, जैन, पारसी, ईसाई और सिख) के शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है।

मौजूदा क़ानून के मुताबिक़ किसी भी व्यक्ति को भारतीय नागरिकता लेने के लिए कम से कम 11 साल भारत में रहना अनिवार्य है। इस विधेयक में पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों के लिए यह समयावधि 11 से घटाकर छह साल कर दी गई है। यानी बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे घोषित इस्लामिक मुल्कों से प्रताड़ित होकर 2014 तक भारत में बतौर शरणार्थी प्रवेश करने वाले अल्पसंख्यकों को नागरिकता मिल जाएगी।

मौजूदा क़ानून के तहत भारत में अवैध तरीक़े से दाख़िल होने वाले घुसपैठी नागरिकता पाने का दावा नहीं कर सकते। उन्हें वापस उनके देश भेजने या हिरासत में रखने के प्रावधान है।

कांग्रेस सहित मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति करने वाली तृणमूल, सपा, बसपा, एनसीपी, आरजेडी दोनो कम्युनिस्ट और डीएमके जैसी पार्टियां इस बिल के विरोध में लामबंद हैं। इन दलों का मंतव्य देश के अल्पसंख्यकों के बीच यह भ्रम फैलाने का है कि बिल मुसलमानों के खिलाफ है जबकि हकीकत यह है कि भारत में रहने वाले अल्पसंख्यकों के हितों का दूर दूर तक कोई टकराव नहीं है।

इस बिल को लेकर हायतौबा मचाने वाले इन दलों ने शायद ही कभी पडोसी तीनो इस्लामिक देशों मे अल्पसंख्यकों की बीते 70 सालों के दौरान हुई दुर्दशा, प्रताडना, बलात् धर्मांतरण और ईश निन्दा के नाम पर उनके कत्ल जैसी वारदातों के खिलाफ कभी एक शब्द भी कहा हो। क्या ये दल नहीं जानते कि विभाजन के समय पाकिस्तान और बांग्लादेश मे अल्पसंख्यकों की आबादी क्रमशः 23 और 22 प्रतिशत थी जो आज घट कर डेढ व सात के करीब रह गयी है ? कोई बताएगा कि घटी संख्या के वे लोग आखिर कहाँ गए ?

एनडीए ने ऐसे सताए गए शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान करने का बीड़ा उठाते हुए संसद मे जो बिल पेश किया है उसकी निष्पक्ष रह कर प्रत्येक देशवासी को समर्थन और सराहना करनी चाहिए। राजनीति दलों को भी वोट-बैंक की सोच से ऊपर उठने की जरूरत है। वोट नहीं देशहित सर्वोपरि है। काश ! वे ऐसा सोचते @

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