भाजपा की एनसीपी के साथ बनी साझा सरकार
अचानक पासा पलटा , राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं
शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे न इधर के रहे न उधर के
कांग्रेस भी बदले घटनाक्रम से हतप्रभ
पदम पति शर्मा
प्रधान संपादक
मुंबई: एक बेहद ही नाटकीय घटनाक्रम के तहत बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस ने एक बार फिर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है। देवेंद्र के साथ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता अजीत पवार ने सूबे के उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इसके साथ ही महाराष्ट्र की राजनीति में पिछले कुछ समय से चली आ रही अनिश्चितता तो खत्म हो गई, लेकिन इसने तमाम सवालों को भी जन्म दे दिया।
स्मरणीय है कि शुक्रवार की रात तक यही खबरें थीं कि उद्धव ठाकरे को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाने पर कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी राजी हो गई हैं। लेकिन राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं। बीती शाम एनसीपी प्रमुख जो दावा कर रहे थे कि उद्धव ठाकरे होंगे मुख्यमंत्री। लेकिन भतीजे अजित पवार ने चाचा शरद पवार को गच्चा देते हुए रातों रात् पाला बदलते हुए भाजपा से हाथ मिला लिया। बताया जाता है कि पिछले दिनों ईडी के रडार पर आए अजित पवार के पास 35 विधायक हैं ।
बताने की जरूरत नहीं कि अजित पवार को एनसीपी विधायक दल का नेता चुना गया था। यानी यह नेता को ही तय करना था कि किस को समर्थन देना है ।
इस गठबंधन की नवगिठत सरकार को महामहिम राज्यपाल ने सदन में बहुमत साबित करने के लिए 30 नवम्बर तक का वक्त दिया है।
शिवसेना का क्या होगा यह फिलहाल भविष्य के गर्भ में है। मगर यह तो कहना ही पड़ेगा कि उसके प्रमुख उद्धव ठाकरे पर गाज तो गिर ही गयी है। सीएम पद की लालच और लालसा में विचारधारा तक की तिलांजली देकर नैसर्गिक राजनीतिक दुश्मन कांग्रेस तक से हाथ मिलाने में गुरेज नहीं करने वाले बाल ठाकरे के इस पुत्र ने तीन दशक पुरानी दोस्त भाजपा से भी नाता तोड़ लिया। उसके विधायक और समर्थक आज किस गिरी मनोदशा में होंगे, यह आसानी से समझा जा सकता है। सच तो यह कि वे न इधर के रहे न उधर के। किस मुँह से विधायक अपने क्षेत्र में जाएंगे।
एक ओर यह समझा जाता है कि गत मंगलवार को पवार की पीएम मोदी के साथ मुलाकात के दौरान ही लगता है कि खिचड़ी पक चुकी थी और उसी का पटाक्षेप 23 नवम्बर की सुबह हुआ जब सुबह आठ बजे राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने भाजपा- एनसीपी गठबंधन की सरकार के लिए फडनवीस और अजित पवार को शपथ दिला दी। लेकिन दूसरी ओर शरद पवार का यह कहना कि अजित ने भाजपा से हाथ मिला कर पार्टी तोड़ दी है। इससे लगता है कि पवार की पी एम से मीटिंग में ऐसा कुछ भी तय नहीं हुआ था।
शपथ ग्रहण के बाद मीडिया से बात करते हुए मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने सही ही कहा, ‘महाराष्ट्र की जनता ने स्पष्ट जनादेश दिया था। हमारे साथ लड़ी शिवसेना ने उस जनादेश को नकार कर दूसरी जगह गठबंधन बनाने का प्रयास किया। महाराष्ट्र को स्थिर शासन देने की जरूरत थी। महाराष्ट्र को स्थायी सरकार देने का फैसला करने के लिए अजीत पवार को धन्यवाद।’ स्मरणीय है कि महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनने के सिर्फ 16 मिनट बाद फडणवीस को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बधाई दे दी इसी से सारी बात समझ मे आ जाती है। जो कल तक यह कहते हुए शेखो बघार रहे थे कि पवार ने भाजपा के चाणक्य अमित शाह को मात दे दी, वे अपने शब्द अब गले में निगल रहे होंगे।
प्रधानमंत्री ने कहा कि शनिवार सुबह 8 बजे तक शायद ही किसी को अंदाजा रहा होगा कि महाराष्ट्र की राजनीति यूं करवट लेगी।
शुक्रवार देर रात तक यह लगभग तय हो गया था कि शनिवार को शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में महाराष्ट्र की नई सरकार गठित होगी।
हालांकि, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) प्रमुख शरद पवार ने शुक्रवार को कहा था कि शिवसेना-राकांपा-कांग्रेस गठबंधन को लेकर सहमति बन गई है और महाराष्ट्र की नई सरकार का नेतृत्व उद्धव ठाकरे करेंगे। कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना के शीर्ष नेताओं की बैठक के बाद उन्होंने यह ऐलान किया था।
लेकिन शनिवार की सुबह तक शरद पवार के इस ऐलान के उलट एनसीपी और भाजपा ने सरकार बना ली। इसी के साथ यह भी कहा जा सकता है कि राजनीति में कोई स्थायी दुश्मन या दोस्त नहीं होता।
भाजपा के पास उसके अपने 105 और निर्दलीय सहित कुल मिला कर 119 विधायक हैं। अगर अजित का 35 विधायक साथ होने का दावा यथार्थ के धरातल पर है , ऐसी स्थिति में फड़णवीस को सदन में बहुमत साबित करने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। लेकिन सुबह नींद से जागने पर शरद पवार को जो यह झटका उनके अपने उत्तराधिकारी ने ही दे दिया है, यह देखते हुए कि यह मराठा सरदार क्या इतनी आसानी से उसको बख्श देगा, नहीं लगता। हालाँकि इस संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि इस बदली परिस्थिति में शिवसेना में भी टूट हो सकती है। कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने से क्षुब्ध उसके विधायक भी पाला बदल सकते हैं । चूकि अजित पवार एनसीपी विधायक दल के नेता चुने जा चुके हैं इसलिए उन पर दल बदल कानून लागू नहीं होता। नेता को फैसला लेने का अधिकार होता है।
लेकिन शरद पवार को इस घटना से सदमा लगा है। उनका कहना है कि यह अजित पवार का निजी फैसला है, पार्टी का नहीं । दूसरी ओर भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष नड्डा ने यह संकेत देकर कि सुप्रिया सुले को केन्द्र में मंत्री बनाया जा सकता है, शरद पवार के इस दावे की हवा निकाल दी है। सुप्रिया बेटी हैं एनसीपी प्रमुख शरद पवार की, हम यह भी न भूलें ।
बहरहाल देखने वाली बात तो यह है कि मध्याह्न बाद एनसीपी, शिवसेना और कांग्रेस की होने वाली संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में क्या निकल कर आता है।