नेहरू-जिन्ना की दोस्त एडविना की भूमिका विभाजन में शकुनी जैसी
डाक्टर रजनीकान्त दत्ता
वरिष्ठ चिकित्सक- पूर्व विधायक
द्वितीय विश्व युद्ध ने ब्रिटेन की फौजी ताकत और विश्व की अर्थव्यवस्था नियंत्रण की भूमिका की कमर तोड़ दी। प्रथम और द्वितीय महा युद्ध में भारतीय मूल के सैनिकों के साहस, युद्ध कौशल और निष्ठा से अंग्रेज भली-भांति परिचित हो चुके थे। नेताजी सुभाष चंद्र बोस और उनकी आजाद हिंद फौज के प्रति भारत वासियों और भारत सैनिकों की निष्ठा से वे भयभीत ही नहीं थे बल्कि पशोपेश में भी पड़ गए थे।
इधर हिंदुस्तान में गांधी जी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आजादी का आंदोलन अपनी चरम सीमा पर था। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व के शक्ति पुंज के रूप में रूस और अमरीका ,और तटस्थ राष्ट्रों के नेतृत्व में बढ़ चुका था। रूस और अमेरिका में शीत युद्ध आरंभ हो चुका था, और विश्व में अमन चैन शांति व्यवस्था के लिए UNO जैसे सर्वमान्य विश्व संगठन भी बन चुके थे।
अंग्रेजों को लगने लगा था कि अब अधिक समय तक वे भारत को गुलाम नहीं बना कर रख पाएंगे। इस समस्या को अपने हित में हल करने के लिए उन्होंने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 से ही अपना होमवर्क शुरू कर दिया था-
भारत का 1 भाग ब्रिटिश इंडिया था जो पूर्णतः अंग्रेजों द्वारा शासित था और दूसरा 568 प्रिंसली स्टेट्स यानी कि भारतीयों द्वारा शासित रियासतें तालुकेदार, जागीरदार, जो सीमित अधिकारों के साथ अंग्रेजों के वफादार गुलाम थे। यही हाल समाज के उस समृद्ध और प्रभावशाली वर्ग का भी था जिसे उन्होंने सर,लार्ड, रायबहादुर, सरदार बहादुर और आर्डर ऑफ ब्रिटिश अंपायर के अलंकरण दिए थे। क्योंकि वे जानते थे कि 1857 की तरह विद्रोह होगा, तो जैसा उन्होंने 1857 के विद्रोह को दबाया था, वैसे भविष्य में अपने इस षड्यंत्र और होमवर्क से इसे भी दबा देंगे।
लेकिन अब स्थितियां भिन्न हो चुकी थी। इसलिए वे भारत को आजाद भी करना चाहते थे।लेकिन सांप्रदायिक आधार पर ,उसे विभाजित कर एवं प्रिंसली स्टेट को स्वतंत्र राज्य होने का विकल्प देकर ताकि आजाद होने के बाद भी भारत टुकड़ों टुकड़ों में बटा रहे, एक दूसरे से झगड़ते रहे और कभी एक आर्थिक और फौजी शक्ति न बन पाए और अंग्रेजों से आजाद होते हुए भी उनके आश्रित रहे।
इसके लिए भारत का एक बड़ा सम्प्रदाय हिंदू मुस्लिम हमेशा एक दूसरे से लड़ते झगड़ते रहते थे, उन्होंने ब्रिटिश इंडिया को सांप्रदायिक आधार पर डोमिनियन स्टेट ऑफ इंडिया और डोमिनियन स्टेट ऑफ पाकिस्तान में ही नहीं बल्कि प्रिंसली स्टेट्स को भी यह स्वायत्तता दी कि इनमे से किन्ही डोमिनियन स्टेट के साथ,वह चाहे तो भौगोलिक सीमा के आधार पर,अपना मिलन कर ले,या आजाद हो जाए।
सांप्रदायिक राजनीति के लिए उन्होंने उस समय के मुख्य हिंदू बाहुल्य पार्टी इंडियन नेशनल कांग्रेस के नेता के रूप में पंडित नेहरू और मुस्लिम बाहुल्य ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के नेता के रूप में मोहम्मद अली जिन्ना,को वर्षों पहले उस समय चुन लिया था। जब ये दोनों एडविना माउण्टबेटन, जो प्रथम वायसराय की पत्नी थी, के साथ लंदन के हैरिस कॉलेज में एक ही क्लास में पढ़ते थे।
इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट 1947 द्वारा धार्मिक आधार पर भारत के बंटवारे की योजना बन गई। इसके पहले कि ये दोनों पक्ष शांतिपूर्ण विभाजन के लिए कोई कंक्रीट होमवर्क कर पाते,जवाहरलाल नेहरू और मोहम्मद अली जिन्ना की पूर्व अंतरंग महिला मित्र, जो अब मौजूदा वायसराय की पत्नी एडविना माउंटबेटन थी। उसने शकुनि के महाभारत जैसी भूमिका निभाई और लार्ड रेडक्लिफ द्वारा बनाए गए भारत के ब्रिटिश पार्लियामेंट द्वारा अधिकृत नक्शे पर इंडियन नेशनल कांग्रेस और मुस्लिम लीग के मान्य अधिकृत प्रतिनिधियों के रूप में उन्हीं से हस्ताक्षर करा लिए और इसे भारत और पाकिस्तान द्वारा विभाजन का स्वीकृत आधिकारिक नक्शा घोषित कर दिया गया।जो सामाजिक भौगोलिक और राजनीतिक दृष्टि से व्यावहारिक ही नहीं बल्कि भारत, भारत वासियों पाकिस्तान और पाकिस्तानियों के लिए विनाशकारी, विध्वंसात्मक उस समय से लेकर तब तक के लिए था, जब तक ये दोनों देश एक-दूसरे से लड़कर बर्बाद न हो जाते या फिर भारत अखंड भारत नहीं बन जाता।
यहां मुझे कहते हुए कोई संकोच नहीं हो रहा है कि विश्व के इतिहास में दुर्योधन और मीर जाफर के बाद अखंड भारत का सबसे ज़्यादा नुकसान पंडित नेहरू ने किया। इतिहास उसके लिए उन्हें कभी माफ नहीं करेगा।मोहम्मद अली जिन्ना तो गांधीजी के इस आश्वासन पर कि उन्हें,भारत का अगर प्रथम प्रधानमंत्री बना दिया जाए तो वह भारत को किसी भी हाल में विभाजित नहीं होने देंगे। लेकिन जवाहरलाल नेहरू को वंशवादी भारत का प्रधानमंत्री बनने की इतनी बड़ी हवस थी,कि गांधीजी के इस कथन के बाद भी कि भारत का विभाजन मेरी लाश पर होगा, उन्होंने गांधी जी की बात नहीं मानी और भारत बिना किसी होमवर्क के विभाजित हो गया। नतीजे मे दुनिया का सबसे बड़ा नरसंहार हुआ।कहते हैं जिसमें 10 लाख से भी ज्यादा लोग मारे गए। स्त्रियों के साथ सामूहिक बलात्कार हुए,अबोध शिशुओं की हत्या हुई और जो कल तक राजा थे इस विभाजन के विस्थापन के कारण रंक हो गए। और आज भी हिंदुस्तान और पाकिस्तान एक दूसरे के जानलेवा दुश्मन है। जैसा अंग्रेजों ने सोचा था वही हुआ।
धर्म के आधार पर यह विभाजन गलत था। एक तरफ पश्चिमी पाकिस्तान के लोग और दूसरी तरफ पूर्व पाकिस्तान के लोग। जिनके बीच की जमीनी दूरी ढाई हजार किलोमीटर से भी अधिक थी। जिनकी भाषा, आचार व्यवहार और मानसिकता मुस्लिम होते हुए भी मुस्लिम ब्रदरहुड की भावना से कोसो दूर थी। जब शेख मुजीब उर रहमान आम चुनाव जीतकर संयुक्त पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनाए जाने वाले थे,तो इन पश्चिमी पाकिस्तानियों ने उन्हें जेल मे डाल दिया। पूर्वी बंगाल में मार्शल लॉ ही नहीं लागू किया बल्कि 1947 के बाद बंटवारे से भी अधिक निर्ममता पूर्वक 30 लाख बंगभाषियो का कत्ल-ए-आम किया। पाकिस्तानी फौज ने लूटपाट की लाखों महिलाओं के साथ बलातकार किया। भारतीय फौज को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाधी ने हुक्म दिया और जनरल मानेकशा के नेतृत्व मे भारत ने बर्बर पाकिस्तानी फौज को घुटने टेकने पर मजबूर करते हुए उनको कैद कर लिया ।एक नये राष्ट्र बांग्लादेश का उदय हुआ।
पाकिस्तान में पानी की जरूरत मुख्यतः सिंधु,रावी,सतलुज,झेलम, व्यास चिनाब से होती हैं। जिनमें से अधिकांश अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण हिंदुस्तान पाकिस्तान के बीच विवाद का विषय है और हमेशा रहेगा।
पाकिस्तान के पीछे ब्रिटेन की यह रणनीति थी कि दिखावे के लिए वह इसे एक डेमोक्रेटिक राष्ट्र का रूप दिया जाए।लेकिन कालांतर में वह उनके और अमेरिका द्वारा निर्देशित सैनिक जुनटा के तानाशाहो के कब्जे में रहे।
फलस्वरुप पहले डेमोक्रेटिक रूप से निर्वाचित प्रथम प्रधानमंत्री लियाकत अली खान को गोली मारी गई,और शेष निर्वाचित प्रधानमंत्री जैसे जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी पर लटकाया गया, बेनजीर भुट्टो को गोली मारी गई और नवाज शरीफ का तख्ता तबके जनरल मुशर्रफ ने पलटा और उन्हें देश से निर्वासित कर दिया और फिर जब वह दोबारा प्रधानमंत्री बने तो उन पर आर्थिक अपराध लगा कर,इस बार की फौजी और ISI हुक्मरानो ने जेल में बंद कर दिया और money-laundering के आरोप में फसे हुए, दुषचरित्र कठपुतली इमरान खान को पाकिस्तान का नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री बना दिया गया।
यह अंग्रेजों की ही साजिश थी और यह फौज की महत्वाकांक्षा कि पाकिस्तान एक एटॉमिक पावर है और आतंकवादियों को बनाने का कारखाना। जिस तरह मसूद अजहर, हाफिज सईद के हितों की पाकिस्तान ने प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से वकालत की, उससे यह स्पष्ट हो गया कि अब वह चीन या ब्रिटेन के इशारों पर एटॉमिक वेपन, आतंकवादियों को इस्तेमाल करने की खुली गुप्त रूप से छूट दे सकता है।इस पर भी विचार करना होगा।
मेरे प्यारे देशवासियों 1947 के बाद हिंदुस्तान को जो विपत्तियां झेलनी पड़ी है,वह जवाहरलाल नेहरू का जाने-अनजाने देश के साथ अक्षम्य विश्वासघात था।वैसा ही अब सोनिया गांधी-वाड्रा कांग्रेस और उनसे प्रभावित देशद्रोही कर रहे हैं। 2014 का महानिर्वाचित चुनाव पानीपत की तीसरी लड़ाई था।जो अब हम भारतवासियों ने जीता है और 2019 में इस बात की पुष्टि कर दी है कि भारत अजेय था और हमारी मूर्खता के कारण 2014 तक,इन काले अंग्रेज़ो का गुलाम रहा।ऐसा फिर कभी नहीं होगा।
कहते हैं, “कि बीते हुए कल से हमें यह शिक्षा लेनी चाहिए कि विश्वासघातियों और देशद्रोहियों को पहचाने और इससे पहले कि वे हमें नुकसान पहुंचा सके, उन्हें जड़ से उखाड़ कर फेंक दें और उनका समूल विनाश कर दें।”
वंदे मातरम।
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