उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से उन आरोपों पर एक रिपोर्ट मांगी है जिनमें कहा गया है कि लोगों को उच्च न्यायालय तक अपनी बात पहुंचाने में कठिनाई हो रही है। भारत के प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा, अगर लोग उच्च न्यायालय से अपनी बात नहीं कह पा रहे हैं तो ये ‘‘बहुत बहुत गंभीर’’ बात है। दो बाल अधिकार कार्यकर्ताओं के अधिवक्ता ने न्यायालय में आरोप लगाया कि लोगों को उच्च न्यायालय से अपनी बात कहने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। प्रधान न्यायाधीश ने अधिवक्ता को चेतावनी दी कि अगर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की रिपोर्ट में विपरीत बात समाने आए तो उन्हें इसके ‘‘नतीजों’’ का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए।

उच्चतम न्यायालय जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान हटाए जाने के फैसले और राज्य में लगे राष्ट्रपति शासन के खिलाफ ‘जम्मू-कश्मीर पीपल कॉन्­फ्रेंस’ (जेकेपीसी) की याचिका पर सुनवाई के लिए सोमवार को तैयार हो गया। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस. ए. बोबडे और न्यायमूर्ति एस. ए. नजीर की एक पीठ ने जेकेपीसी की याचिका को अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान हटाए जाने के फैसले और राज्य में लगे राष्ट्रपति शासन के खिलाफ पहले से ही लंबित याचिकाओं के साथ संलग्न कर दिया है। इन सभी याचिकाओं को पहले ही पांच सदस्यीय संविधान पीठ को सौंपा जा चुका है।

पीठ ने हालांकि स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान हटाने के खिलाफ अन्य नयी याचिकाओं पर विचार करने से इनकार कर दिया। पीठ ने कहा कि वह अनुच्छेद 370 पर याचिकाओं की संख्या बढ़ाने के पक्ष में नहीं है। पीठ ने कहा कि इस मामले में जो भी बहस करना चाहते हैं, वे पक्षकार बनने के लिए आवेदन दायर कर सकते हैं। पीठ ने इस मामले में दायर अनेक याचिकाओं का जिक्र करते हुये कहा, ‘‘ हम विधायी कार्रवाई की वैधता की जांच कर रहे हैं।’’ इन सभी याचिकाओं पर संविधान पीठ अक्टूबर के पहले सप्ताह में सुनवाई करेगी।

भाषा

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