कर लो चाँद मुठ्ठी में; दुनिया का चौथा देश होने की ओर
✍ पदम पति शर्मा
(वरिष्ठ पत्रकार)
चंदा मामा अब दूर के नहीं रह जाएँगे। वो अब हमारी मुट्ठी मे होने वाले हैं। पृथ्वी से तीन लाख 84 हजार किलोमीटर की दूरी नापते हुए भारतीय चंद्रयान जब 6/7 सितम्बर यानी शुक्रवार की देर रात एक बज कर 38 मिनट पर हौले से चंद्रमा की सतह पर उतरेगा तब इसरो के बंगलोर स्थित मुख्यालय मे मौजूद प्रधानमंत्री मोदी जी सहित इस अत्यंत महत्वाकांक्षी और ऐतिहासिक अभियान से जुड़े समस्त वैैैज्ञानिको की धड़कने थमी होगी। यही नहींं, यह नजारा देखने के लिए सारी दुनिया की भी निगाहें लगी होगी। एक सेकेण्ड की भी चूक सारे किये कराये पर पानी फेर देगी। यदि सब कुछ योजनानुसार शनिवार की सुबह साढ़े पांच बजे तक सम्पन्न हो गया तो छह बजे मोदी जी का राष्ट्र के नाम सम्बोधन होगा।
आइए बताते है कि अभियान यदि सफल रहा तो भारत को क्या हासिल होगा ?
विक्रम लैंडर चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करने जा रहा है। यह दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करने वाला दुनिया का पहला लैंडर होगा। सवाल यह है कि दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ क्यों करवाई जा रही है? दरअसल आजतक कोई भी देश इस क्षेत्र मे लैंडिंग नहीं कर सका है। यहां पर बहुत सारी बर्फ जमी हुई है। अगर भारत यहां पर पहुंचता है तो वहां मौजूद पानी की मौजूदगी के अन्य सबूतों को एकत्र कर सकता है। मालूम हो कि इससे पहले 2008 में भी चंद्रयान-1 को लॉन्च किया गया था। इसमें हमने दुनिया के सामने ये जानकारी रखी थी कि चंद्रमा की सतह पर ‘पानी’ मौजूद है चाहे वह मॉल्यूकुलर फॉर्म में ही क्यों न हो।
इस मिशन से भारत को कई उम्मीदें हैं। यह मिशन पूरे सौर मंडल के विकास को समझने में हमारी मदद कर सकता है। चंद्रमा 3.5 अरब वर्ष पुराना है लेकिन आखिर चंद्रमा कैसे अस्तित्व में आया इसके पीछे क्या थ्योरी रही होगी? इस मिशन के जरिए इन जानकारियों को पाने की कोशिश की जाएगी। लैंडर के चांद पर उतरने के बाद इसके भीतर से रोवर ‘प्रज्ञान’ बाहर निकलेगा और एक चंद्र दिवस यानी के पृथ्वी के 14 दिनों की अवधि तक अपने वैज्ञानिक कार्यों को अंजाम देगा। इसरो के अनुसार लैंडर में तीन वैज्ञानिक उपकरण लगे हैं जो चांद की सतह और उप सतह पर वैज्ञानिक प्रयोगों को अंजाम देंगे , जबकि रोवर के साथ दो वैज्ञानिक उपकरण हैं जो चांद की सतह से संबंधित समझ में मजबूती लाने का काम करेंगे।
अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने कहा कि ‘चंद्रयान-2’ लैंडर और रोवर को लगभग 70 डिग्री दक्षिणी अक्षांश में दो गड्ढों ‘मैंजिनस सी’ और ‘सिंपेलियस एन’ के बीच एक ऊंचे मैदानी इलाके में उतारने का प्रयास करेगा। इसरो के अनुसार चांद का दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र बेहद रुचिकर है क्योंकि यह उत्तरी ध्रुव क्षेत्र के मुकाबले काफी बड़ा है और अंधकार में डूबा हुआ।