अनिता चौधरी
राजनीतिक संपादक
बदलाव का नाम ही रफ्तार है और किसी देश की रफ्तार की गति भी बनी रहे इसलिए जरूरत के हिसाब से समय-समय पर बदलाव उस देश में भी होते रहते हैं । भारत में भी जरूरत के हिसाब से आज़ादी के बाद कई बदलाव हुए । कभी अल्पसंख्यकों के अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए तो कभी समाज के पिछड़े वर्ग के अधिकार को सुरक्षित रखने के लिए । सालों से लंबित एक जरूरत पर मौजूदा मोदी सरकार ने भी कुछ ही दिन पहले एक अहम फैसला लिया “नागरिकता संसोधन बिल” जो हमारे तीन इस्लामिक पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों को जिन पर धार्मिक बर्बरता कुछ इस तरह हुई कि उन्हें अपना घर बार ,मुल्क सब छोड़ कर भारत में शरण लेनी पड़ी ।
दशकों से ये लोग बिना किसी अधिकार के भारत की ज़मीन पर किसी तरह अपना गुज़र-बसर कर रहे थे। सरकार ने दशकों से ज़िन्दगी की ज़द्दोज़हद में सडांध में जी रहे इन लोगों को नागरिकता संशोधन कानून के तहद बस जीने का अधिकार दे दिया । इस कानून का भारत के किसी नागरिक से कोई लेना देना नहीं है ,मगर क्योंकि इस बिल में एक शब्द जो धर्म है , जसका नाम “मुसलमान” है दुनिया भर में जो मेजरिटी है , मगर भारत में जिसे माइनॉरिटी के रूप में पहचाना जाता है । उस धर्म, उस मज़हब, उस समाज में न जाने कैसी बेचैनी सी आ गयी है । वो धर्म कुछ ज्यादा ही उग्र कुछ ज्यादा आक्रामक हो उठा है, यह कहते हुए कि इस बिल की वजह से उनका अस्तित्व खतरे में आ गया है ।
मगर सवाल यह खड़ा होता है कि आखिर कैसे ? इस बिल में तो उनका ज़िक्र ही नही है । और जिस देश के अल्पसंख्यकों हिन्दू, सिख, इसाई, पारसी, बौद्ध, जैन को भारत जीने का अधिकार दे रहा है वहां मुसलमान तो बहुसंख्यक है , उनके पास वे सारे अधिकार है जो वहां के अल्पसंख्यकों के पास नहीं है । यही नहीं इन तीन देशों में वहां के बहुसंख्यकों के पास अल्पसंख्यकों के दमन का भी अधिकार है ।
यदि हम भारत की बात करें तो यहां तो अल्पसंख्यको भी वो सारे अधिकार हैैं जो यहां के बहुसंख्यकों के पास है । साथ ही अल्पसंंख्ययक की संवेदना और सुविधा को ध्यान में रखते हुए कई बार सब्सिडी जैसी सुविधा भी उनको हासिल होती रहती है ।
ऐसे में सवाल यदि उठता है कि आखिर हमारे देश के मुसलमान जिनका नागरिकता संसोधन बिल से कोई लेना देना नहीं है वे क्यों हिंसा अंर आगजनी पर आमादा हैं? क्या ये लड़ाई वो पाकिस्तान , अफगानिस्तान और बांग्लादेश के मुसलमानों के, जो वहां बहुसंख्यक हैं, लिए लड़ रहे हैं ? या यह एक मजहबी कट्टरता का बहाव है जो सीमा पार के बह्यसंख्यक मुसलमानों के लिए बह रहा है या फिर यह एक येसी जिद भरी मानसिकता की लगाई हुई आग है जो कहता है कि मुसलमान , जिहाद के नाम पर हर अनचाही मांग पर आग लगाएगा क्योंकि जिहाद इस्लाम की पहचान है ।
वैसे इस आगजनी पर विपक्ष के रूख को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि ज़मीन खो चुका विपक्ष अस्तित्व की तलाश में इस आगजनी, तोड़-फोड़, वाले इस्लामिक मुद्दे पर राजनीति की रोटी सेकने के फिराक में है ।
शायद कुछ हद तक सफलता भी मिल जाये । मगर क्या यह सफलता इतनी बड़ी होगी जो उन्हें सत्ता के गलियारे तक ले जाकर सिंहासन पर काबिज होने का मौका दे देगी ?
बहरहाल नार्थ ईस्ट से लेकर दिल्ली तक , मुम्बई से लेकर उत्तरप्रदेश-बिहार तक जिस तरह से सौहार्द और भाईचारा बिगाड़ने की कोशिश की जा रही है वो यह साफ बता रहा है कि सत्ता की लालच में ये आग अभी कुछ और रंग दिखाएगी ।
गंगा -जमुनी तहजीब वाला भारत जिसमें संगम में सौहार्द का रस घोलने के लिए गंगा बह रही है और जमुनी कब्र खोद रहा है । इसे मज़ाक न समझे यह मेरी गुज़ारिश है । जमुनी खुद अपनी जुबान से कह रहा है उसे गंगा (हिंदुत्व) से आज़ादी चाहिये , वो हिंदुत्व ,(गंगा)की कब्र खोद कर रहेगा । शायद जमुनी समझ नही पा रहा अगर बहुसंख्यक गंगा में उफान आ गया तो फिर क्या तांडव मचेगा । दरअसल इस देश में जमुनी(मुसलमान ) को आज़ादी के बाद वोट बैंक का मोहरा बनाते हुए मुसलमानों को बिगड़ैल बच्चे की तरह पाला गया है और जो अपनी हर जिद घर तोड़ कर पूरी करवाने में विश्वास रखता है । उम्र और संख्या भले बढ़ती जा रही है मगर वो अल्पसंख्यक के नाम पर कभी बड़ा नहीं होना चाहता । इस देश के मुसलमान को कोई कानून नहीं चाहिए उसे बस अपनी इस्लामिक आज़ादी चाहिए । उन्हें इस बात का भी अहसास नहीं कि बतौर मुसलमान जितनी स्वच्छंदता और स्वतंत्रता उन्हें इस देश में मिल रही है । उन्हें विश्व के किसी देश में नहीं मिलेगी और मुसलमान बहुल देश में तो बिल्कुल ही नहीं । मगर फिर भी वो पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के जो वहां बहुसंख्यहैं मगर भारत में अपनी पैठ बनाने के लिए घुसपैठिये के तौर पर बैठे हुए हैं, उनकी लड़ाई लड़ रहे हैं । हमारा जमुनी ,गंगा की कब्र खोद कर सिर्फ़ मुसलमान बन कर ,पाकिस्तान,अफगानिस्तान, बांग्लादेश के घुसपैठिये मुसलमानों के लिए 7 दशक बाद अपने घर में फिर एक बार आग लगा रहा है । एक बार फिर में बोल रही हूँ नागरिकता संशोधन कानून का किसी भी भारतीय चाहे वो भारत के मुसलमान हों या हिन्दू उनसे कोई लेना देना नहीं है । हाँ कुछ शरणार्थियों को अगर नागरिकता मिल जाती है तो कई तरह के अपराध पर भी अंकुश लगेंगे और जो आपराधिक रिकॉर्ड में नही थे और आपराधिक घटनाओं की अंजाम दे रहे थे वो ऑन रिकॉर्ड भी हो जाएंगे ।
हम अगली कड़ी में इस कानून के फायदे और नुकसान भी बताएंगे । क्रमशः