पदम पति शर्मा
प्रधान संपादक

दिल्ली महिला आयोग की प्रमुख, स्वाति मालीवाल ने कल रात उन्नाव बलात्कार पीड़िता की मौत के बाद कहा,” उत्तर प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार से अपील करती हूं कि इस मामले (उन्नाव बलात्कार मामले) में बलात्कारियों को एक महीने के भीतर फांसी दी जानी चाहिए।”

स्वाति एक पढी लिखी बुद्धिजीवी महिला हैं । उनको भारतीय कानून की भी समझ है, यह बताने की जरूरत नहीं । इसके बावजूद वो इस तरह की माँग क्यो कर रही हैं ? यह समझ से परे है। 

प्रदेश सरकार हो या केन्द्र, ये दोनों सरकारें  वर्तमान न्याय प्रणाली के रहते एक महीना तो क्या एक साल में भी आरोपी को फांसी पर नहीं लटका सकतीं । इसलिए उनको अपनी आम आदमी पार्टी से कहना चाहिए कि देश के कानून मंत्री से मिल कर 160 बरस पुरानी सड गल चुकी न्यायिक व्यवस्था मे आमूल चूल परिवर्तन का ब्लू प्रिंट सौपे। यही नहीं इस मुद्दे पर राजनीति से ऊपर उठ कर देश के सभी राजनीतिक दलों को एक मंच पर आकर गंभीरता के साथ सोचने कि जरूरत है कि देश के आम आदमी को कैसे त्वरित न्याय मिले। जो नौकरशाही बीच मे आ रही है आडे, उसे कैसे खतम किया जाए, इसका रास्ता तलाशने होगा। 

दरिन्दगी की घटना के विरोध मे भावावेश में आकर कैण्डिल मार्च निकालना, धरना प्रदर्शन के बाद घर बैठने से सामाजिक कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी समाप्त नहीं होती। न्याय प्रणाली मे बदलाव के लिए कैण्डिल मार्च और धरना प्रदर्शन लगातार करने की जरूरत है। सरकार को मजबूर आपका अनवरत मुखर आक्रोश ही कर सकता है। स्वाती मालीवाल जैसी महिलाओं को इसके लिए बाहर निकलने की जरूरत है। 

“विलम्बित न्याय अन्याय है”, यह जुमला हम दशकों से सुनते चले आ रहे हैं। स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हर रोज अपने संबोधनों मे एक सूत्र वाक्य हमेशा दोहराते हैं “मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेन्स”। लेकिन यह कैसे होगा, इसको परिभाषित नही करते। क्या बिना न्यायिक और पुलिस पुनर्सुधार के यह संभव है ? यही कारण है उनका यह सूत्र वाक्य अभी तक पूर्णता के साथ चरितार्थ नहीं हो सका है। इन दोनो के रिफॉर्म की डेढ दशक पहले की संस्तुति रिपोर्ट धूल खा रही है मगर किसी भी सरकार ने उनको लागू करने के लिए आज तक पहल नहीं की। हालांकि मोदी सरकार ने बेकार हो चुके न जाने कितने ही कानून खत्म किए हैं । मगर ये अभी तक नाकाफी हैं। आपको सिस्टम बदलना होगा। जब तक फाइलों का निबटान दिनों नहीं घटो में नहीं होगा तब तक निर्भया जैसी आत्माओं को शान्ति नहीं मिल सकती। 

मोदी जी को इस नाचीज ने न जाने कितनी बार सोशल मीडिया के जरिए व्यवस्था परिवर्तन के लिए पुलिस और न्यायिक रिफार्म लागू करने की गुहार की होगी। मगर आज तक तो कुछ नहीं हुआ। देखना है अब शायद कुछ हो। 

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