ब्राह्मणों के सामने नत-मस्तक होने पर मजबूर करती है…… कहानी प्रेरणादायक हो तो कृपया 100 लोगों तक पहुंचाने की दक्षिणा देने को ही कर्तव्य समझें…. सभी परम आदरणीय, मान्यवर एवं गणमान्य, पाठक गण ।

       ऐसे होते हैं ब्राह्मण संस्कार
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ब्राह्मण के घर से खाली हाथ कैसै जाएंगे……

 पिछले दिनों मैं हनुमान जी के मंदिर में गया था जहाँ पर मैंने एक ब्राह्मण देव को देखा, जो एक जनेऊ हनुमान जी के लिए लेकर आये थे ।

 संयोग से, मैं भी उनके,  ठीक पीछे, लाइन में खड़ा था, मेंने सुना वो पुजारी से कह रहे थे कि वह स्वयं का काता (बनाया)  हुआ जनेऊ हनुमान जी को पहनाना चाहते हैं, पुजारी जी ने जनेऊ तो ले लिया, पर पहनाया नहीं ।

 जब ब्राह्मण ने पुन: आग्रह किया तो पुजारी बोले यह तो हनुमान जी का श्रृंगार है, इसके लिए बड़े पुजारी जी (महन्त जी) से अनुमति लेनी होगी, आप थोड़ी देर प्रतीक्षा करें वे आते ही होगें । 

  मैं, उन लोगों की बातें गौर से सुन रहा था, जिज्ञासा-वश, मैं भी महन्त जी के आगमन की प्रतीक्षा करने लगा ।

 थोड़ी देर बाद, जब महन्त जी आए, तो पुजारी जी ने, उन ब्राह्मण देव के, आग्रह के बारे में बताया, तो महन्त जी ने ब्राह्मण देव की ओर देख कर कहा, कि देखिए हनुमान जी ने जनेऊ तो पहले से ही, पहना हुआ है और यह फूलमाला तो है नहीं कि एक साथ कई पहना दी जाएं । आप चाहें तो यह जनेऊ हनुमान जी को चढ़ाकर प्रसाद के रूप में ले लीजिए । 

 इस पर उन ब्राह्मण ने बड़ी ही विनम्रता से कहा कि मैं देख रहा हूँ कि भगवान ने पहले से ही, जनेऊ धारण कर रखा है परन्तु कल रात्रि में चन्द्रग्रहण लगा था और वैदिक नियमानुसार प्रत्येक जनेऊ धारण करने वाले को ग्रहणकाल के उपरांत पुराना जनेऊ बदलकर, नया जनेऊ धारण कर लेना चाहिए,  बस यही सोच कर, सुबह सुबह मैं हनुमान जी की सेवा में यह ले आया था, परम पूज्य हनुमान प्रभु जी को यह प्रिय भी बहुत है । 

 हनुमान चालीसा में भी लिखा है कि - *"हाथ बज्र और ध्वजा विराजे, कांधे मूज जनेऊ साजे" ।*

अब महन्त जी, थोड़ी सोचनीय मुद्रा में बोले कि हम लोग बाजार का जनेऊ नहीं लेते हनुमान जी के लिए शुद्ध जनेऊ बनवाते हैं, आपके जनेऊ की क्या शुद्धता है ?

 इस पर वे ब्राह्मण बोले कि प्रथम तो यह कि ये कच्चे सूत से बना है, इसकी लम्बाई 96 चउवा (अंगुल) है, पहले तीन धागे को तकली पर चढ़ाने के बाद तकली की सहायता से नौ धागे तेहरे गये हैं ।  इस प्रकार 27 धागे का एक त्रिसुत (त्रिगुण) है, जो कि पूरा एक ही धागा है, कहीं से भी खंडित नहीं है, इसमें प्रवर तथा गोत्रानुसार प्रवर बन्धन है तथा अन्त में ब्रह्मगांठ लगा कर, इसे पूर्ण रूप से शुद्ध बनाकर, हल्दी से रंगा गया है और यह सब मैंने, स्वयं अपने हाथ से गायत्री मंत्र जपते हुए किया है ।

 ब्राह्मण देव की जनेऊ निर्माण की इस व्याख्या से मैं तो स्तब्ध रह गया, मन ही मन उन्हें प्रणाम किया, मेंने देखा कि अब महन्त जी, उनसे संस्कृत भाषा में, कुछ पूछने लगे, उन लोगों का सवाल - जबाब तो मेरे समझ में नहीं आया परन्तु महन्त जी को देख कर लग रहा था कि वे ब्राह्मण के जबाब से पूर्णतया सन्तुष्ट हैं । अब वे उन्हें अपने साथ लेकर हनुमान जी के पास पहुँचे, जहाँ मन्त्रोच्चारण कर महन्त जी ने, अन्य 3 पुजारियों के सहयोग से, ब्राह्मण देव को साथ में लेकर, हनुमानजी को, जनेऊ पहनाया । तत्पश्चात पुराना जनेऊ उतार कर उन्होंने बहते जल में विसर्जन करने के लिए अपने पास रख लिया । 

 मंदिर तो मैं अक्सर आता हूँ परन्तु  आज की इस घटना ने, मेरे मन पर गहरी छाप छोड़ दी । मेंने सोचा कि मैं भी तो ब्राह्मण हूं और नियमानुसार मुझे भी जनेऊ बदलना चाहिए, उन ब्राह्मण देव के पीछे-पीछे, मैं भी मंदिर से बाहर आया । उन्हें रोककर प्रणाम करने के बाद, मैनें अपना परिचय दिया और कहा कि मुझे भी एक जोड़ी शुद्ध जनेऊ की आवश्यकता है, तो उन्होंने असमर्थता व्यक्त करते हुए, कहा कि बस इस समय तो वह हनुमान जी के लिए ही लेकर आये हैं । हां, यदि आप चाहें तो मेरे घर पर, कभी भी, आ जाइएगा ।  घर पर, जनेऊ बनाकर मैं रखता हूँ, जो लोग जानते हैं, वे आकर ले जाते हैं । 

 मैंने उनसे, उनके घर का पता लिया और उन्हें प्रणाम करके, वहां से चला आया । शाम को उनके घर पहुंचा तो देखा कि वे अपने घर के दरवाजे पर, एक तख्त पर बैठे, एक व्यक्ति से बात कर रहे हैं । मैं  अपनी गाड़ी से उतरकर, उनके पास पहुंचा । मुझे देखते ही वे खड़े हो गए, और मुझसे बैठने का आग्रह किया, अभिवादन के बाद मैं बैठ गया, बातों बातों में पता चला कि वहाँ पर मेरे पहिले से आये हुए, वे व्यक्ति भी, पास के रहने वाले हैं और वे भी, ब्राह्मण देव ही हैं तथा उनसे जनेऊ लेने आये हैं ।

 वे ब्राह्मण देव, अपने घर के, अन्दर गए । इसी बीच उनकी दो बेटियाँ जो क्रमश: 12 वर्ष व 08 वर्ष की रहीं होंगी, एक के हाथ में एक लोटा पानी तथा दूसरी के हाथ में, एक कटोरी में गुड़ तथा दो गिलास थे, हम लोगों के सामने गुड़ व पानी रखा गया, मेरे पास बैठे व्यक्ति ने दोनों गिलास में पानी डाला फिर गुड़ का एक टुकड़ा उठा कर खाया और पानी पी लिया तथा गुड़ की कटोरी मेरी ओर खिसका दी, पर मेंने पानी नहीं पीया । कारण कि, आप सभी लोग जानते होंगे,  हर जगह का पानी कितना दूषित हो गया है कि पीने योग्य नहीं होता है । घर पर आर.ओ. लगा हुआ है,  इसलिए ज्यादातर आर.ओ. का ही पानी पीता हूँ । बाहर रहने पर पानी की बोतल खरीद लेता हूँ। 

 इतनी देर में ब्राह्मण देव, अपने घर से बाहर आए और एक जोड़ी जनेऊ उनको दिया, जो पहले से वहाँ पर बैठे हुए थे । उन्होंने जनेऊ लिया और 21 रुपए ब्राह्मण देव को देकर चले गये ।

 मैं, अभी वहीं रुका रहा, इन ब्राह्मण देव के बारे में और अधिक जानने का कौतुहल मेरे मन में था । उनसे बात-चीत में पता चला कि वे संस्कृत से स्नातक हैं । नौकरी मिली नहीं और पूँजी ना होने के कारण कोई व्यवसाय भी नहीं कर पाए । घर में, बृद्ध माँ, पत्नी, दो बेटियाँ तथा एक छोटा बेटा है, एक गाय भी है ।

 वे बृद्ध माँ और गौ-की सेवा करते हैं । विशिष्ट यज्ञों की यजमानी करते हैं, पर साधारणतया यजमानी से दूर रहते हैं । जनेऊ बनाना उन्होंने अपने पिता व दादा जी से सीखा है । यह भी उनके गुजर-बसर में सहायक है । 

 इसी बीच उनकी बड़ी बेटी, पानी का लोटा, वापस ले जाने के लिए आई, किन्तु अभी भी मेरे गिलास में पानी भरा था, उसने मेरी ओर देखा । मुझे लगा कि उसकी आँखें मुझसे पूछ रही हैं  कि मैंने पानी क्यों नहीं पिया, मेंने अपनी नजरें उधर से हटा लीं, वह पानी का लोटा और गिलास वहीं छोड़, कर चली गयी । शायद उसे उम्मीद थी की मैं बाद में पानी पी लूंगा ।

 अब तक मैं इस परिवार के बारे में काफी हद तक, जान चुका था, और मेरे मन में दया के भाव भी आ रहे थे । खैर ब्राह्मण देव ने मुझे एक जोड़ी जनेऊ दिया, तथा कागज पर एक मंत्र लिख कर दिया, और कहा कि जनेऊ पहनते समय इस मंत्र का उच्चारण अवश्य करूं ... ।

 मैंने सोच समझ कर 500 रुपए का नोट ब्राह्मण देव की ओर, बढ़ाया तथा जेब और पर्स में, एक का सिक्का तलाशने लगा, मैं जानता था कि 500 रुपए एक जोड़ी जनेऊ के लिए बहुत अधिक है पर मैंने सोचा कि इसी बहाने इनकी थोड़ी मदद हो जाएगी । 

 ब्राह्मण देव हाथ जोड़ कर, मुझसे बोले कि श्रीमंत 500 सौ का फुटकर तो मेरे पास नहीं है, मैने कहा अजी, साहबजी मुझे, फुटकर की आवश्यकता नहीं है । आप यह पूरा ही रख लीजिए, तो उन्होंने कहा, नहीं बस मुझे मेरी मेहनत भर के 21 रूपए दे दीजिए।  मुझे उनकी यह बात अच्छी लगी कि गरीब होने के बावजूद भी वे लालची नहीं हैं, पर मैने भी, पांच सौ रूपये ही देने के लिए सोच लिया था । इसलिए मैंने कहा कि फुटकर तो मेरे पास भी नहीं है, आप संकोच मत कीजिए, पूरे ही रख लीजिए, आपके काम आएंगे ।


 उन्होंने कहा कि नहीं, मैं संकोच नहीं कर रहा । आप इसे वापस रखिए, जब कभी आपसे दुबारा मुलाकात होगी तब 21 रू. दे दीजिएगा । 

 इन ब्राह्मण देव ने तो मेरी आँखें ही नम कर दीं । उन्होंने कहा कि शुद्ध जनेऊ की एक जोड़ी पर 13-14 रुपए की लागत आती है ।  07 - 08 रुपए अपनी मेहनत के जोड़कर, वे  इसके 21 रू. लेते हैं । कोई-कोई एक का सिक्का न होने की बात कह कर बीस रुपए ही,  दे जाते हैं  ।

 मेरे साथ भी यही समस्या थी मेरे पास 21 रू. फुटकर नहीं थे ।  मैंने पांच सौ का नोट वापस रखा और सौ रुपए का एक नोट उन्हें पकड़ाते हुए,  बड़ी ही विनम्रता से, उनसे रख लेने को कहा तो इस बार, वे मेरा आग्रह नहीं टाल पाए और 100 रूपए रख लिए और मुझसे एक मिनट रुकने को कहकर,  घर के अन्दर गए, बाहर आकर, और चार जोड़ी जनेऊ मुझे देते हुए बोले,  मेंने आपकी बात मानकर सौ रू. रख लिए हैं, अब आप भी, मेरी बात मान कर, यह चार जोड़ी जनेऊ और रख लीजिए ताकी मेरे मन पर भी कोई भार ना रहे । 

 मैंने,  मन ही मन उनके स्वाभिमान को प्रणाम किया,  साथ ही उनसे पूछा कि इतने जनेऊ लेकर मैं क्या करूंगा, तो वो बोले कि मकर संक्रांति, पितृ विसर्जन, चन्द्र और सूर्य ग्रहण, घर पर किसी हवन पूजन संकल्प, परिवार में शिशु जन्म के सूतक आदि अवसरों पर जनेऊ बदलने का विधान है, इसके अलावा आप अपने सगे सम्बन्धियों रिस्तेदारों व अपने ब्राह्मण मित्रों को उपहार भी दे सकते हैं, जिससे हमारी ब्राह्मण संस्कृति व परम्परा मजबूत होगी, साथ ही साथ, जब आप मंदिर जाएं, तो विशेष रूप से गणेश जी, शंकर जी व हनुमान जी को जनेऊ जरूर चढ़ाएं...। उनकी बातें सुनकर वे पांच जोड़ी जनेऊ, मैंने अपने पास रख लिये और मैं वहाँ से, खड़ा हुआ,  तथा वापसी के लिए विदा मांगी, तो उन्होंने कहा कि आप हमारे अतिथि हैं पहली बार घर आए हैं । हम आपको खाली हाथ कैसे जाने दे सकते हैं ?

 इतना कह कर उन्होंने अपनी बिटिया को आवाज लगाई  । वह बाहर निकली, तो ब्राह्मण देव ने, उससे इशारे में कुछ कहा, तो वह उनका इशारा समझकर जल्दी से अन्दर गयी और एक बड़ा सा डंडा लेकर बाहर निकली । बिटिया के हाथ में, डंडा देखकर मेरे समझ में नहीं आया कि मेरी कैसी विदायी होने वाली है ?

 अब डंडा बिटिया हाथ से उन ब्राह्मण देव ने, अपने हाथों में ले लिया और मेरी ओर देख कर मुस्कराए । जबाब में मैने भी मुस्कराने का प्रयास किया । वे डंडा लेकर आगे बढ़े, तो मैं थोड़ा,  पीछे हट गया ।उनकी बिटिया उनके पीछे पीछे चल रही थी । मैंने देखा कि दरवाजे की, दूसरी तरफ, दो पपीते के पेड़ लगे थे । डंडे की सहायता से, उन्होंने एक पका हुआ, पपीता तोड़ा । उनकी बिटिया वह पपीता, उठा कर अन्दर ले गयी और पानी से धोकर एक कागज में लपेट कर मेरे पास ले आयी और अपने नन्हें नन्हें हाथों से, मेरी ओर बढ़ा दिया । उसका यह निश्छल अपनापन देखकर, मेरी आँखें भर आईं, मैं अब तक, अपनी भीग चुकी आंखों को उससे छिपाता हुआ दूसरी ओर देखने लगा, तभी मेरी नजर पानी के उस लोटे और गिलास पर पड़ी, जो अभी तक भी वहीं रखे थे । इस छोटी सी बच्ची का अपनापन देख, मुझे अपने पानी न पीने पर, ग्लानि होने लगी । मैंने झट से एक टुकड़ा गुड़ उठाकर मुँह में रखा और पूरे गिलास का पानी एक ही साँस में पी गया । बिटिया से पूछा कि क्या एक गिलास पानी और मिलेगा । वह नन्ही सी परी फुदकती हुई, लोटा उठाकर ले गयी और पानी भर लाई, फिर उस पानी को मेरे गिलास में डालने लगी और उसके होंठों पर तैर रही मुस्कराहट जैसे मेरा धन्यवाद कर रही हो,  मैं अपनी नजरें उससे छुपा रहा था, पानी का गिलास उठाया और गर्दन ऊंची कर के वह अमृत पीने लगा,  पर मैंअपराधबोध से दबा जा रहा था, अब बिना किसी से कुछ बोले पपीता गाड़ी की दूसरी सीट पर रखा, और अपने, घर के लिए, चल पड़ा । घर पहुंचने पर हाथ में पपीता देख कर मेरी पत्नी ने पूछा कि यह कहाँ से, लेकर आए हो, तो बस मैं उससे इतना ही कह पाया कि *एक ब्राह्मण देव के घर गया था तो उन्होंने खाली हाथ आने ही नहीं दिया ।*

 मैंने जीवन मे ब्राह्मण देवता तो हज़ारों देखे थे, परन्तु ब्राह्मणत्व से परिचय पहली बार हुआ और ऐसा हुआ कि मैं, उस सारी रात को, सो न सका, रह-रह कर उन ब्राह्मणदेव की बातों का स्मरण मुझे होता रहा, *जिन्होंने मुझे एक ही दिन में न जाने कितनी ही शिक्षाएं देकर, वे मेरे गुरुतुल्य हो गए ।*

 मैंने निश्चय किया कि उनसे जाकर जनेऊ निर्माण अवश्य सीखूंगा।

 यह सच है कि धर्म को जीना ही धर्म का वास्तविक प्रचार है, इसके बाद भाषण, उद्धबोदन, संगठन आदि सब मिथ्या है ।

 *ब्राह्मण होने के नाम पर..... फरसे-डंडे-झंडे लेकर ढोल पीटने वाले, उन ब्राह्मण - पुत्रों को अवश्य भेजें....। आपसे यह मेरा विनम्र अनुरोध है ।।*✡?? 
 *अपने दोस्तों, परिचितों और शुभचिन्तकों को भी अवश्य भेजिएगा* 

 *मैंने अपने 90 से अधिक सोशियल मीडिया के मित्रों को पोस्ट कर दिया है, आप भी इसे आगे पोस्ट कीजिएगा*
      *साभार नमन ।*

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