अयोध्या और ओरछा का गहरा नाता है। जहां अयोध्या में रामलला की बाल लीलाओं की जीवंत स्मृतियां हैं तो वही ओरछा में श्री राम राजा के रूप में विराजते हैं। चार पहर की आरती में राजसी वैभव के साथ उन्हें पहरे पर खड़े सिपाही सशस्त्र सलामी देते हैं। राम यहां के जनजीवन की सांसों में धड़कते हैं। अयोध्या और ओरछा का करीब 600 वर्ष पुराना नाता है। 16वीं शताब्दी में ओरछा के बुंदेला शासक मधुकरशाह की महारानी कुंवरि गणेश अयोध्या से रामलला को ओरछा लाई थी।
पौराणिक कथाओं के अनुसार कहां जाता है कि ओरछा के शासक मधुकरशाह कृष्ण भक्त थे। और उनकी महारानी कुंवरि गणेश राम उपासक भक्ति की परस्पर विरोधी उपासना ही दोनों के बीच अक्सर विवाद का कारण बन जाती थी। एक बार मधुकर शाह ने रानी से व्रन्दावन जाने का प्रस्ताव पर उन्होंने विनम्रतापूर्वक उसे अस्वीकार करते हुए अयोध्या जाने की हठ ठान ली।
इसी दौरान राजा ने रानी पर व्यंग किया की अगर तुम्हारे राम सच मे हैं तो उन्हें अयोध्या से ओरछा लाकर दिखाओ। अपने आराध्य के प्रति किए गए व्यग्य से महारानी कुंवरि अयोध्या रवाना हो गईं। अयोध्या में 21 दिन तपस्या के बाद भी जब श्री राम प्रकट नहीं हुए तो उन्होंने सरयू नदी में छलांग लगा दी।
कहा जाता है की महारानी की भक्ति को देखकर ही भगवान श्री नदी के जल में ही उनकी गोद में आ गए इसके बाद महारानी जब भगवान श्री राम से अयोध्या से ओरछा चलने का आग्रह किया तो उन्होंने तीन शर्ते रख दीं। पहली शर्त थी मैं यहां से जाकर जिस जगह बैठूंगा वहां से नहीं उठूंगा।
दूसरी शर्त में ओरछा के राजा के रूप में विराजित होने की किसी दूसरे की सत्ता नहीं रहेगी तो वहीं तीसरी शर्त में उन्होंने खुद को बाल रूप में पैदल एक विशेष पुष्य नक्षत्र में साधु संतों के साथ ले जाने की थी। महारानी के द्वारा शर्ते मानने के बाद रामराजा ओरछा आ गए। तब से भगवान राम यहां राजा के रूप में विराजमान हैं। भगवान राम के अयोध्या और ओरछा दोनों स्थानों पर रहने को पुष्ट करता दोहा आज भी रामराजा मंदिर में लिखा है कि रामराजा सरकार के दो निवास है खास दिवस ओरछा रहत है रैन अयोध्या वास।
श्रद्धालु किरण कुमारी, किक्की उपाध्याय (रामजी की सयन आरती के पाताली हनुमान तक उन्हें छोड़कर जाने वाला भक्त) भगवान रामराजा सरकार जब रोजना ओरछा से अयोध्या प्रतीकात्मक दीपक के स्वरूप में पाताली हनुमान मंदिर से जाते हैं तो भक्त जयकारों के साथ अपने राजा को विदा करते हैं उनके स्वागत में मन्दिर से ही पुष्प बिछा दिए जाते हैं।
विजय गोस्वामी सहायक पुजारी रामराजा मन्दिर कहते हैं कि अयोध्या में श्री राम की जीवंत स्मृतियां भले ही विवाद का विषय हों लेकिन ओरछा की स्मृतियों में वह यहां के जनजीवन में है धड़कनों मे बसते हैं कहीं कोई विवाद नहीं अयोध्या में कोई भी विवाद हो कोई भी फैसला पर ओरछा राम की उपस्तिथि है। ठीक उसी तरह निर्विवाद है जैसी कभी अयोध्या में हुआ करती थी।
ओरछा में राम हिन्दू के भी हैं मुसलमान के भी 40 वर्षो से ओरछा में रहने वाले मुन्ना खान जो सिलाई का काम करते हैं राम राजा की अयोध्या से ओरछा आने की कहानी मुंह जवानी याद रखते हैं कहते है रोज दरवार में सजदा करता हूं। हमारे तो सब यही हैं राम उनके आराध्य हैं इसलिए उनकी ऐसी कामना है की अयोध्या का फैसला भगवान राम के ही पक्ष में आए।
वहीं ओरछा के नईम बेग भी राम को उतना ही मानते हैं जितना रहीम को उनकी माने तो आपसी भाईचारा ऐसा ही रहे जैसा ओरछा के रामराजा दरवार में है। यही तो ओरछा के राम की गंगा जमुनी तहजीब है। ओरछा के राम सुविधा नहीं श्रद्धा चाहते हैं इसलिए उन्होंने विशाल चतुर्भुज मन्दिर का परित्याग कर वात्सल्य भक्ति की प्रतिमूर्ति महारानी कुंवरि गणेश की रसोई में बैठना स्वीकार किया था वे भक्तो के भावों में बसते हैं भवनों की भविता में नहीं।
मुन्ना खान रामराजा सरकार के बारे में बताते हुए कहते हैं कि ओरछा और अयोध्या का संबंध करीब 600 वर्ष पुराना है। सम्बत 1631 में चैत्र शुक्ल नवमी को जब भगवान ओरछा आये तो उन्होंने संतसमाज को यह आश्वासन भी दिया था की उनकी राजधानी दोनों नगरों में रहेगी। तब यह बुंदेलखण्ड की अयोध्या बन गया। ओरछा का रामराजा मंदिर विश्व का एकमात्र अनूठा मंदिर है।
जहां श्री राम को चार बार की आरती में सशस्त्र सलामी गार्ड ऑफ ऑनर दी जाती है क्योंकि राम यहां राजा के रूप में विराजे हैं इतना ही नहीं ओरछा नगर के परिसर में रामराजा के अलावा देश के किसी भी वीवीआईपी को गार्ड ऑफ ऑनर नहीं दिया जाता। चाहे वह प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ही क्यों न हों। क्योंकि यहां से राजाराम को गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाता है।
ओरछा को भले ही बुंदेलखंड का अयोध्या कहा जाता हो पर यहां की शांति और सद्भाव यह बताता है कि रामलला अयोध्या में नहीं ओरछा में ही विराजते हैं। यहां सुबह होती है राम राम से और शाम होती है रामराजा की जांच के साथ, जन्म राम से मरण राम से जीवन का तारन राम से यहां के शालाखा पुरुष हैं राम यहां के राजा है।
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