ऋचा बाजपेयी
महाबलीपुरम। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग आज भारत-चीन के बीच दूसरे अनौपचारिक सम्मेलन के लिए पहुंचे हैं। चेन्नई से जिनपिंग ममल्लापुरम पहुंचे जिस महाबलीपुरम के नाम से भी जानते हैं। यहां पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीनी राष्ट्रपति का स्वागत किया और उन्हें यहां मौजूद हैरिटेज साइट्स भी दिखाईं। पीएम मोदी, चीनी राष्ट्रपति को लेकर अर्जुन पेनाश यानी उस जगह पर लेकर पहुंचे जहां पर अर्जुन और पांडवों ने तपस्या की थी। अर्जुन पेनाश का सातवीं सदी के मध्य में तैयार किया गया था। आइए आपको बताते हैं कि क्या है यह जगह और क्या है इसकी अहमियत।
क्या है अर्जुन पेनाश
भारतीय पुरातत्व विभाग की वेबसाइट के मुताबिक अर्जुन पेनाश करीब 30 मीटर (100 फीट) लंबा और 15 मीटर (45 फीट) ऊंचा है। इस जगह को अर्जुन पेनाश या फिर गंगा के अवतरण की जगह के तौर पर भी जाना जाता है। इस जगह की कहानी महाभारत के काल से जुड़ी है। बताया जाता है कि पांडवों के एक भाई अर्जुन ने यहां पर भगवान शिव का अस्त्र को हासिल करने के लिए यहां पर लंबी तपस्या की थी। हिंदु मान्यताओं के मुताबिक कड़ी तपस्या से भगवान भी मिल जाते हैं और अर्जुन ने यहां पर इसी बात को चरितार्थ किया था।
भगीरथ ने भी की तपस्या
इसी तरह से कहते हैं कि गंगा को पृथ्वी पर लाने वाले राजा भगीरथ ने भी यहीं पर तपस्या की थी। भगीरथ की तपस्या इतनी कड़ी थी भगवान शिव को अपनी जटाओं में कैद गंगा को धरती पर जाने के लिए छोड़ना पड़ा था। कहते हैं कि अगर भगवान शिव ऐसा नहीं करते तो फिर गंगा पूरे बल के साथ धरती पर गिरतीं और प्रलय तक आ सकती थी। कुछ लोग यह भी मानते हैं पल्लवों को खुश करने के लिए इन कहानियों को गढ़ा गया था। अर्जुन को शासकों की पहचान माना जाता है तो गंगा शक्ति के शुद्धिकरण के तौर पर जानी जाती हैं। इसलिए इस जगह पर दोनों कहानियों का प्रचलन है।
क्या है अर्जुन पेनाश में
इस जगह पर जो मूर्तियां बनी हैं उनसे भी इसी कहानी का अंदाजा लगता है। स्मारक में एक तरफ छोटी सी दरार है और इससे पानी अपने आप ही बहता है। वहीं, बायीं तरफ अर्जुन अपने एक पैर पर खड़े हुए नजर आते हैं और उनके पीछे भगवान शिव हैं जिनके हाथ में वही अस्त्र है जिसके लिए अर्जुन ने तपस्या की थी। कुछ हाथी भी यहां पर बनाए गए हैं और माना जाता है कि वह अर्जुन की रक्षा करते थे।